जालंधर(राहुल अग्रवाल):- एक बेबस, बेसहारा, 75 साल की बुजुर्ग मां जो अपने सपनों के घर में रहने को तड़प रही थी। दो लड़के, एक मंदबुद्धि और दूसरा 5000 के वेतन पर एक कारखाने में काम करता है। मां ने जीवन भर लोगों के घरों में काम किया और कुछ पैसे जोड़कर एक छोटा सा प्लॉट खरीदा और निर्माण शुरू किया। मंहगाई और पैसे की कमी के कारण मां को काम छोड़कर बिना छत के रहने को मजबूर होना पड़ा।
मां ने अपनी गुहार आखिरी उम्मीद एनजीओ तक पहुंचाई। आखरी उम्मीद एनजीओ ने पूरे समुदाय और पूरी टीम के सहयोग से माताजी के घर का निर्माण शुरू किया। जिस तरह कोरोना काल से जरूरतमंदों को लंबे समय से सिर्फ 11 रुपये में रोजी रोटी, कपड़ा, दवा और एंबुलेंस सेवा आखिरी उम्मीद दे रहा है। इसी तरह बेसहारा, बेघर, जरूरतमंद लोगों की आखिरी उम्मीद भी पूरी कर रहा है। हमारे समाज को ऐसे संगठनों की बहुत जरूरत है। आइए हम भी मानवता की सेवा के ऐसे संगठनों का हिस्सा बनकर अपना जीवन सफल बनाएं।